नवजीवन की कुष्मित कलियाँ
पुष्पित नव पल्लव उद्द्गान हुआ
पर्णित मुखरित नव बेला पर
शिव शुद्ध शक्ति अवदान हुआ।
अविचल निश्छल मन भाव मिले
नवमोदित पुलकित गान मिले
स्वर कण्ठ सदा स्वछन्द रहे
मन मुक्त विकार न कष्ट रहे।
अपघटित न हो मन शांत रहे
और विचार एकांत रहे
मन ब्रह्म में लीन सदा ही रहे
बस रोम -रोम ये राम कहे।
वाणी में नव उन्माद रहे
पथ पर अपने विश्वास रहे
अग्रसरित रहे निज पथ पर हम
नित अडिग रहे संकल्पो पर हम।
अपनी वाणी के उच्च ताप में
मन शशक्त रहे आत्मज्ञान में
नित नव संकल्प हमारे हो
निज अथक प्रयास हमारे हो।
कुदरत की सृष्टि अपना लें
उसकी पगडण्डी को सच माने
मन मुक्ति मोक्ष को पायेगा
जिस दिवस ब्रह्ममय हो जायेगा।
भँवरे को ब्रह्मलीन करो
आत्मज्ञान हो जायेगा
न जीवन में बाधा होगी
न कष्टदाई माया होगी।
न मोह भ्रमित सरिता होगी
न लोभ भ्रमित कविता होगी
खिल उठी पवन मन बगिया
नव जीवन की कुष्मित कलियाँ।
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