Sunday, January 5, 2020

शायरी कलेक्शन

प्रेम समर्पण की वेदी है
मैं तो यही समझता था
दुनियाँ दारी के माने को
खुद से दूर समझता था
निपट अकेलापन ही अच्छा था
दुनियाँ को समझाता हूँ
घिरे अंधेरों से जुगुनू को
खुद से बेहतर पाता हूँ।।
07/01/2024


तेरी रुसवाई से भला मुझको संभलना कैसे है 
तेरे लहज़े से याद आया कि बदलना कैसे है


मेरे हिस्से में ये मैखाने नहीं होते
तुम्हारी ज़िद को जो हम माने नहीं होते
पत्थरों ने ठोकरों से रूबरू ग़र ना किया होता 
तो ज़िन्दगी हम तुम्हे पहचाने नहीं होते।।
26/02/2022
बेताब बाराबंकवी

ग़र बात अपनों के जज़्बात की न होती।  
तो मेरी मुस्कान के पीछे ग़मों की खान न होती।। 
उसकी ज़िद पर ग़र मैंने गुनाह कर लिया होता। 
मेरी भी तस्वीर आज तन्हा तन्हा सी नहीं होती।। 
#miss_u_so_much
17/01/2021

तेरी यादों से खुद को बहला रहा हूँ मैं। 
ऐ दिल तुझे अब भी फुसला रहा हूँ मैं।। 
तेरी ही संगदिली का असर है मुझपर। 
तभी तो इश्क़, तुझे आज़मा रहा हूँ मैं।।
1/12/2020
बेताब बाराबंकवी 

रंजिशे थी बेशक बोलचाल भी न था 
दर्द है उनको सुनते ही आँसू छलक गए
21 जुलाई 2020
-बेताब बाराबंकवी 

दिखावे का इस दौर में प्रचलन बहुत है!
गैर को अपना अपनों से गैर सा चलन बहुत है!!
ज़माने की होड़ से जुड़ना तो सम्भल कर रहना!
तेरे इन रास्तों में फिसलन बहुत है!!
19 जुलाई 2020
-बेताब बाराबंकवी 

मेरे तसव्वुर का ग़र मै हिसाब रखूँ 
सीने में न जीने की फिर आस रखूँ 
ठोकरों ने दिया है मुझे चेहरा नया 
तेरे जुर्मों का क्या हिसाब रखूँ 
15 जुलाई 2020
-बेताब बाराबंकवी 

अपनी खुदगर्ज़ी तक सीमित रहूँ
मेरे अंदाज में नहीं 
बुराई देखकर भी चुप रहूँ 
मेरे रिवाज में नहीं
बेशक़ ख़फ़ा होंगे चंद जयचंद ज़माने के 
इनके खौफ से कुछ न कहूँ
इतना सब्र मेरी आवाज में नहीं 
                     ♥️♥️♥️♥️
26:04:2020 
-बेताब बाराबंकवी



यकीनन हर पल वो मुस्कुराते हैं 
हमसे महफ़िलो में नजरें भी चुराते है 
बेशक़ खुशियां बांटते हैं वो हर किसी के संग
फिर भी ग़म तो हमसे ही बताते हैं
                     ♥️♥️♥️♥️
25:04:2020 
-बेताब बाराबंकवी

मेरी उमीदों से ही सवरता है मेरे अपनों का आशियाँ 
कई बर्षों से इस उम्मीद में अपना आंगन नहीं देखा 
                     ♥️♥️♥️♥️
08:04:2020 
-बेताब बाराबंकवी-


सज़र से पत्तियाँ कुछ इसकदर बिखरी 
हवा में गुमशुदी सी हो गयी 
आहटों ने फिर अँधेरा कर दिया 
आँख दरिया से समंदर हो गयी ll
28:03:2020 
-बेताब बाराबंकवी-


आँधियां रफ़्तार से कुछ इसकदर तूने चलाई 
जंगलों से पक्षियों का,  आशियाँ भी खो गया 
तू ही खुदा, रब तु ही, तू इस भरम में हो गया 
उसने की थोड़ी मसक्कत,कुनबा तेरा हिल गया 
कर्म तूने जो किये,फल आज उसका मिल गया 
सड़कों पर देखे मवेशी, तू कैद घर में हो गया ll
28:03:2020 
-बेताब बाराबंकवी-

क्या खूब मतलबी है ज़माना आजकल 
कि दवा की दुकानों पर ज़हर मिलता है 
घाव अपनों को भी दिखाना जरा सोच समझकर 
यहाँ अक्सर हथेलियों में नमक मिलता है 
26:03:2020 
-बेताब बाराबंकवी-

समंदर में रहकर भी  प्यास रहती है 
उसके आने की हरपल मुझे आस रहती है 
मैं चलू छोड़कर जब अपने राहें उमर को 
तस्वीर छुपा देना जो मेरे पास रहती है 
22:03:2020 
-बेताब बाराबंकवी-

जिंदगी का ये सफर जब पूरा होगा 
एक सवाल उस खुदा से मेरा होगा
आखिर क्या मिला तुझे? 
मेरी ख्वाहिसों को चकनाचूर करके 
मेरी खुशियों को मेरी राहों से 
हर बार दूर करके !!!
17:03:2020 
-बेताब बाराबंकवी-

मैं भी चाहता था इस  बार होली यूँ  आये ,
बिछड़ा हुआ मेरा यार मुझसे मिल जाये ,
मेरी दुनिया उदास है जिसके इंतज़ार में ,
काश वो चुपके से आये जिंदगी ग़ुलाल हो जाये, 
10:03:2020 
-बेताब बाराबंकवी-

मुकद्दर से हारकर मैंने कदम पीछे लिया था 
क्या पता था हर अक्स हर पल हमसे हिसाब लेंगे  
10:03:2020 
-बेताब बाराबंकवी-

आसमानी परिंदे से कुछ कम नहीं सनम मेरा
जिंदगी इतनी गुजरी मेरी इंतजार करते करते
न जाने क्या क्या भरम है मेरे यार में,
मेरे इश्क को लेकर, 
मैं इतना बुरा तो नही,
पर लगता है बीतेगी इल्तिजा करते करते l
21:02:2020 
-बेताब बाराबंकवी-

"दिल लगी को, दिलग्गी का नाम मत दो साहब
इन खामोश  निगाहों में कोई और नहीं
मिलना,बिछड़ना,जीना,मरना सब बहाने हैं जिंदगी के
अमा अपनी मोहब्बत में इनकी कोई जरुरत नही
कुसूर न उनका है न मेरा है
बस दिल की बनावट में, कोई मिलावट नही"
20:02:2020 
-बेताब बाराबंकवी-

वक्त रहते ग़र मैंने, इक गुनाह कर लिया होता 
ऐ जिंदगी, मैं आज तेरा गुनहगार न  होता
फुरसत से तराशा  था कायनात ने जिस क़ातिल को  
उसके दीदार का तलबग़ार मैं  आज न होता..

02:57   22:01:2019
-बेताब बाराबंकवी-



समन्दर सी यादें, रेत सा हूँ मैं 
भिगोकर लहरें अक्सर मुझसे  मख़ौल करती हैं 
कभी गर ख़ुशनुमा सा ख़ाब भी आ गया मुझको 
वक्त की कड़ियाँ, तब मुझसे  मज़ाक  करती है। 
-बेताब बाराबंकवी -

दर्द मेरे सीने का  ब-अदब   बढ़ाकर
जाने कहाँ  वो अक्सर खो जाते हैं 
मैं हूँ मोहब्बत या मोहरा मुझे मालूम नहीं 
पर नींद  मेरी हर रात वो  चुरा जाते हैं। 
- बेताब बाराबंकवी-


हम ने सीने से लगाया दिल न अपना बन सका 
मुस्कुरा कर तुम ने देखा दिल तुम्हारा हो गया। 
~जिगर मुरादाबादी

हुस्न भी है पनाह में इश्क़ भी है पनाह में 
इक तिरी निगाह में इक मिरी निगाह में। 
~हैरत गोंडवी

उस के चेहरे की चमक के सामने सादा लगा 
आसमाँ पे चाँद पूरा था मगर आधा लगा। 
~इफ़्तिख़ार नसीम

इतने हिजाबों पर तो ये आलम है हुस्न का 
क्या हाल हो जो देख लें पर्दा उठा के हम
~जिगर मुरादाबादी

किसी का यूँ तो हुआ कौन उम्र भर फिर भी
ये हुस्न ओ इश्क़ तो धोका है सब मगर फिर भी
~फ़िराक़ गोरखपुरी

न पाक होगा कभी हुस्न ओ इश्क़ का झगड़ा
वो क़िस्सा है ये कि जिस का कोई गवाह नहीं
~हैदर अली आतिश

हम अपना इश्क़ चमकाएँ तुम अपना हुस्न चमकाओ
कि हैराँ देख कर आलम हमें भी हो तुम्हें भी हो
~बहादुर शाह ज़फ़र

सुना है उस के बदन की तराश ऐसी है 
कि फूल अपनी क़बाएँ कतर के देखते हैं 
~अहमद फ़राज़

तेरी सूरत से किसी की नहीं मिलती सूरत 
हम जहाँ में तिरी तस्वीर लिए फिरते हैं 
~इमाम बख़्श नासिख़

इलाही कैसी कैसी सूरतें तू ने बनाई हैं 
कि हर सूरत कलेजे से लगा लेने के क़ाबिल है 
~अकबर इलाहाबादी

इश्क़ का ज़ौक़-ए-नज़ारा मुफ़्त में बदनाम है 
हुस्न ख़ुद बेताब है जल्वा दिखाने के लिए 
~ असरार-उल-हक़ मजाज़ 

वो आँख क्या जो आरिज़ ओ रुख़ पर ठहर न जाए
वो जल्वा क्या जो दीदा ओ दिल में उतर न जाए
~ फ़ना निज़ामी कानपुरी

मोहब्बत तो हम ने भी की और बहुत की
मगर हुस्न को इश्क़ करना न आया
~मंज़र लखनवी

हुस्न भी कम्बख़्त कब ख़ाली है सोज़-ए-इश्क़ से
शम्अ भी तो रात भर जलती है परवाने के साथ
~बिस्मिल सईदी

फूलों की सेज पर ज़रा आराम क्या किया 
उस गुल-बदन पे नक़्श उठ आए गुलाब के 
~आदिल मंसूरी


मायूस न हो जिंदगी 
दौर बदलेगा,  हम मिलेंगे 
फर्क बस इतना होगा 
राह तेरी होगी, रहगुजर हम होंगे 
- बेताब बाराबंकवी-


अपनी गुरबत को छुपा के रख
अपने गिरेवां में ऐ जिंदगी
अजब चलन है यहाँ 
अफ़सोस न कर 
अब इंसानियत भी मापते है
लोग ऊँची ईमारत से.
- बेताब बाराबंकवी-

अपनी आरजू  थी 
कि कुछ राज बताये 
कल कैसे बीते 
कुछ ख़ास बताये 
अफ़सोस, वो गैरो की तरह
कुछ यूँ गुजरे 
जैसे  अन्ज़ान थे वो हमसे 
मेरा पता, उन्हें कौन  बताये। 
- बेताब बाराबंकवी-

अभी फुर्सत कहाँ उनको
मेरी राहों में आने की 
अभी उलझे हुए है वो 
हवाओं में ज़माने की 
नहीं मालूम है उनको 
कि ये सब दिखावे हैं 
दौर गुजरा, लोग भूले 
अब यही आदत ज़माने की 
- बेताब बाराबंकवी-

महफ़िल ए रुसवाई में वो अक्सर याद आते हैं
दर्द हम आज भी हर हद तक छुपाते हैं
पर क्या करें ये कसूर कलम का है 
जब भी उठती है, हम इश्क ही गुनगुनाते हैं। 
- बेताब बाराबंकवी-


जिंदगी का सफर बेशक खुशमिजाज गुजरा
यक़ीनन प्यार भी इसमें बेसुमार गुजरा
कैद न कर सका मुठ्ठी में  अपनी तकदीर को
जाने के बाद उनके हर पल न गवार गुजरा।
- बेताब बाराबंकवी-



नफरतो ने बदल डाला हर गली का प्यार जागो
कट रही है नींव की मिटटी मेरे सरकार जागो
जिस शजर पर बैठकर खा रहे हो तुम फल चुनावी
उसकी जड़ पर कर रहे हो क्यों बराबर वार जोगो।
- बेताब बाराबंकवी-

मैं आ गया हूँ संवर के तेरी सगाई में
ज़रा सा जहर मिला दे मेरी मिठाई में
ये तेरे दिल की जमीं दूसरे के नाम सही
हमारा इश्क मिलेगा यहाँ खुदाई में।
- बेताब बाराबंकवी-


आरज़ू वस्ल की रखती है परेशां क्या क्या
क्या बताऊ कि मेरे दिल में है अरमां क्या क्या
ग़म अज़ीज़ो का हसीनो की जुदाई देखी
देखे दिखलाए अभी गर्दिश ए दौरां क्या क्या।
- बेताब बाराबंकवी-


गुजरते वक्त बाजारों में अब भी याद आता है
किसी को उसके कमरे में संवरता छोड़ आए हैं
हमारा रास्ता तकते हुए पथरा गयी होंगी
वो आँखे जिनको हम खिड़की पे रखा छोड़ आये है
तू हमसे चाँद इतनी बेरुखी से बात करता है
हम अपनी झील में एक चाँद उतरा छोड़ आये हैं।
- बेताब बाराबंकवी-

कभी कभी मुस्कुरा भी लेते है
याद अपनों की जब आती है
दर्द ए गम छुपा भी लेते है
है आरज़ू कि हम साथ साथ हो
ये कम्बख़्त ज़माने की दौड़ है कि
याद आती है, तो भुला भी लेते है।
- बेताब बाराबंकवी-

फितरत किसी की आजमाया न कर  ऐ जिंदगी
हर शख्स अपनी हद में बेहद लाजवाब होता है।
- बेताब बाराबंकवी-

अपनी आरजू हम उनसे किस हद तक छुपाये
उनको एहसास भी हो जाये मेरी जान भी न जाए।
- बेताब बाराबंकवी-

सिलसिला ये वो है जो थमने का नाम नहीं लेता
वक्त है कि एक पल विराम नहीं लेता
जिंदगी फिसलती है मुठ्ठी से रेत की तरह
फिर भी वक्त का वक्त से कोई पैग़ाम नहीं लेता।
- बेताब बाराबंकवी-


मोहब्बत भी साहब,  बड़ी बेईमान होती है
कभी बारिश,  तो कभी बंजर रेगिस्तान होती हैं 
बेवजह दोष देकर, अक्सर निकल जाते हैं, जनाब 
इस अदा में भी उनकी बड़ी शान  होती हैं. 
- बेताब बाराबंकवी-







Saturday, January 4, 2020

मन

मन पागल भँवरा जीवन का 
जो कली - कली मंडराता है 
खुशियों की खातिर लपक-झपक 
फूलों पर चाल फिराता है 
नवजीवन की बगिया में 
कौतूहल दिखलाता है 
रस चूस-चूस कर फूलों का 
अपना मन बहलाता है 
कलियों की कलह उसे नहीं 
वह अपनी जान बचाता है 
कभी -कभी ज्यादा लालच में 
कलियों से बिंध जाता है 
मन नवमोदित कलह कलह कर 
खुद जीवन व्यर्थ गवाता है 
अपनी पगडण्डी स्वयं चुनो 
जीवन के धागे स्वच्छ बुनो 
जीवन को कंटक मुक्त करो 
शुभ जीवन के बस  पुष्प चुनो 
अपने भँवरे मन को जन 
श्वेताम्बर कर सकता है 
भाव, विनोद, विनय निश्छल हो 
आत्मदीप्ति उज्जवल पुलकित हो 
नव रंग खिले नव पुष्प मिले 
मन जब श्वेत वर्ण हो जाता है 
क्यों जीवन व्यर्थ गवाता है 
मन पागल भँवरा जीवन का 
जो कली कली मंडराता है। 



संदीप गोस्वामी 

जीवन-ज्योति

नवजीवन की कुष्मित कलियाँ 
पुष्पित नव पल्लव उद्द्गान हुआ 
पर्णित मुखरित नव बेला पर 
शिव शुद्ध शक्ति अवदान हुआ। 
                                          अविचल निश्छल मन भाव मिले 
                                           नवमोदित पुलकित गान मिले 
                                           स्वर कण्ठ सदा स्वछन्द रहे 
                                           मन मुक्त विकार न कष्ट रहे। 
अपघटित न हो मन शांत रहे 
और विचार एकांत रहे 
मन ब्रह्म में लीन सदा ही रहे 
बस रोम -रोम ये  राम कहे। 
                                         वाणी में नव उन्माद रहे 
                                         पथ पर अपने विश्वास रहे 
                                         अग्रसरित रहे निज पथ पर हम
                                         नित अडिग रहे संकल्पो पर हम। 
अपनी वाणी के उच्च ताप में 
मन शशक्त रहे आत्मज्ञान में 
नित नव संकल्प हमारे हो 
निज अथक प्रयास हमारे हो। 
                                         कुदरत की सृष्टि अपना लें 
                                         उसकी पगडण्डी को सच माने  
                                         मन मुक्ति मोक्ष को पायेगा 
                                         जिस दिवस ब्रह्ममय हो जायेगा। 
भँवरे को ब्रह्मलीन करो 
आत्मज्ञान हो जायेगा 
न जीवन में बाधा होगी 
न कष्टदाई माया होगी। 
                                        न मोह भ्रमित सरिता होगी 
                                        न लोभ भ्रमित कविता होगी 
                                        खिल उठी पवन मन बगिया 
                                        नव जीवन की कुष्मित कलियाँ। 

प्रार्थना

है किशन नाम तू सहज सरल 
व्यंगार्थ हुए पल पल विह्वल 
है रसिक रास रसना फेरी 
तू चाँद चकोर सुमन केरी 
है अजब नाथ महिमा तेरी 
सब साथ रहे यह आस रहे 
न द्वेष भावना पास रहे 
मिट जाये निकट जो विकट  घड़ी 
संताप मिटै हर दोष मिटै
सब मोह मिटै उस माया से 
जो मनुष देह को भ्रमित करे 
नस्वर ही जीवन व्यर्थ करे 
ऐसी माया से रहो परे 
तुम करो प्रेम उस साजन से 
जो कण कण-क्षण क्षण में विदित रहे 
न द्वेष भावना है उसमे 
न क्षणिक मात्र कटु सैय्या है 
है रास रचे वो रसिक राज 
वो सावल देह कन्हैया है। 


   जय श्री राधे कृष्णा 

इत्तेफ़ाक़ से इश्क

बचपना ख़त्म न हुआ दिल बेईमान हो गया 
आठवीं में ही था बस प्यार हो गया 

गुलाब उसने दिया 
हमने ले भी लिया 

मालूम न था कि गुलाब जैसा ही इश्क है 
कभी हसे कभी रोये 
कभी जगे कभी सोये 
बुआ की डांट  खायी 
बाप की लात खायी 
पर ये लत न गयी 
अरे खूब उसकी याद आयी 
कलेजा तो तब हिल गया 
जब उसके चक्कर में 
एक बंदा और मिल गया 
कांटा गुलाब का तब इश्क में चुभ गया। 

नशा भी साहब इस इश्क का बेहिसाब था 
आठवीं में सबसे फ़ास्ट,
और दसवीं में सिर्फ पास था 
ये दशा, दिशा दोष का समयचक्र था 
हर किसी दोस्त को इसका अपना अनुभव था 
बेचारा  उस वक्त वही था 
जो आज UPSC पास कर गया 
हम तो इश्क के मारे थे 
वो ही हमको  बर्बाद कर गया। 

बाजार में आज जब सारे इश्कजादों को देखता हूँ 
तो अपने ठेले के लिए थोड़ी सी जगह खोजता  हूँ। 



 -कृपया हास्य में तर्क की अपेक्षा न करे
बस अपनी बीती कहानी रिमाइंड करें। 

आजकल



है अँधेरा बहुत, लौ के फ़िराक में हूँ आजकल 

माना कि ज़मी है मेरा आशियाना 
फिर भी आसमान के फ़िराक में हूँ आजकल ।

बदलते वक्त को किसने देखा है 
कि ले ये कौन सी करवट 
यही वजह है कि दवा के फ़िराक में हूँ आजकल । 

रंजिशे हर राज़  को उजागर कर रही है आजकल 
रंगो में भी बटवारे की बू है आजकल 
नासाज सी जिंदगी मुझे लगता है 
ये तेरा बसेरा नहीं 
मतलबी कौम का बस फ़साना है आजकल। 

आओ बैठो अपनी दहलीज पर प्यार से 
इंतजार इसको भी है अपनों का आजकल 
चंद लम्हो कि जिंदगी जहन्नुम न बने 

इसी से बचने के फ़िराक में हूँ आजकल। 


संदीप गोस्वामी