उड़ान भले ही मेरी बहुत ऊंची हो
मंजिल मेरी तुम्हारे सिवा कुछ और नहीं
घेरा लहरों ने मेरी कश्ती को आहिस्ता-आहिस्ता
मकसद मुझे डुबाने के सिवा कुछ और नहीं
अपने पराए सब ने लुफ्त लिया
जब भी अपनी जिंदगी का हमने जिक्र किया
आज भी अचानक जब नींद खुलती है
नाम लबों पर तुम्हारे सिवा कुछ और नहीं
मेरे काम से परेशान मेरे नाम से हैरान
लोग कल भी थे लोग आज भी हैं
मेरी चहलकदमी से सब समझते हैं मैं जिंदा हूं
तुम से बिछड़ कर मैं राख के सिवा कुछ और नहीं
बन्दिशों ने जकड़ा है मेरी ख्वाहिश को इस कदर
घूमता हूं चाक सा पर मंजिल नहीं कोई
ग़र फिराया हाथ भी किस्मत ने कभी सर पर
जरूरत थी खिलौने की मै इसके सिवा कुछ और नहीं
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