करना मोहब्बत तो दूरी न रखना
मासूम चेहरे को नूरी ही रखना
थम सा गया हूँ उसके बिना मैं
मोहब्बत को अपनी अधूरी न रखना
सिसकना, तड़पना, बहकना,मचलना
सफर कई अक्सर पैदल ही चलना
वो मासूमियत से बात अपनी मनाना
ज़िद के सहारे जीत अपनी जताना
वो पल काश फिर मेरे पास आएं
राहों में मेरी वो फिर मुस्कुराएं
मुझे न गुजरना वहीं थम सा जाना
मैं देखूँ भले न ये कल का ज़माना।।
-बेताब बाराबंकवी